28 फरवरी को सचिवालय के सभागार में बुलाई गई बैठक बिहार की शिक्षा के इतिहास में महत्वपूर्ण होने वाली है। बैठक का मुख्य विषय यह है कि उच्च शिक्षा के 13 पारंपरिक विश्वविद्यालयों के प्रशासन को राजभवन का आदेश मानना चाहिए या शिक्षा विभाग का।
विवाद का कारण: शिक्षा विभाग का आग्रह है कि कुलपति, कुल सचिव समेत विश्वविद्यालय के पदाधिकारियों को शिक्षा विभाग की बैठकों में भाग लेना अनिवार्य है। राजभवन ने विश्वविद्यालय प्रतिनिधियों को इस बैठक में भाग लेने से मना किया है।
ऐसे में यदि कुलपति शिक्षा विभाग की बैठक में भाग लेते हैं, तो वे राजभवन के आदेश का उल्लंघन करेंगे। यदि वे शिक्षा विभाग की बैठक में भाग नहीं लेते हैं, तो शिक्षा विभाग उन्हें निलंबित भी कर सकता है। यह मामला कोर्ट तक भी पहुंच सकता है।
कुलपति या कुल सचिव की जगह कोई अन्य पदाधिकारी शिक्षा विभाग की बैठक में भाग ले सकता है। राजभवन और शिक्षा विभाग आपस में बैठकर इस मुद्दे का समाधान निकाल सकते हैं।
शिक्षा विभाग ने उच्च शिक्षा संस्थानों के निरीक्षण के लिए रोस्टर जारी कर दिया है। 40 अधिकारियों को 26 फरवरी से 2 मार्च तक विभिन्न कॉलेजों एवं स्कूलों में जाकर निरीक्षण करना है।
यह टकराव बिहार की उच्च शिक्षा के लिए हानिकारक हो सकता है। उम्मीद है कि राजभवन और शिक्षा विभाग इस मुद्दे का जल्द से जल्द समाधान निकालेंगे ताकि छात्रों की शिक्षा प्रभावित न हो।