सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि अब सांसदों-विधायकों को सदन में वोट के बदले नोट लेने या सवाल पूछने पर भी मुकदमा दर्ज होगा। यह फैसला 1998 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले को पलटता है, जिसमें कहा गया था कि सांसदों-विधायकों को सदन में होने वाली गतिविधियों के लिए विशेषाधिकार प्राप्त है और उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के चार सांसदों द्वारा 1993 में विश्वास मत के दौरान पैसे लेकर कांग्रेस ने पीवी नरसिंह राव की सरकार के समर्थन में वोट डालने के मामले में सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसदीय विशेषाधिकार का मकसद सांसदों-विधायकों के लिए सदन में भय रहित वातावरण बनाना है, न कि उन्हें भ्रष्टाचार करने की छूट देना। यदि कोई सांसद-विधायक घूस लेता है, तो यह भारत के संसदीय लोकतंत्र को बर्बाद कर देगा।
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